Thursday, January 1, 2015
Wednesday, October 8, 2014
काश.......
काश.......
ऐ काश कोई ऐसी ताबीर हो जाये
तुझे सोचूं और तुझे खबर हो जाये
जब भी खोलूं मैं आँखें मेरी
तू सामने नज़र आये
मैं मुस्कुराऊ
तो तू मेरे साथ खिलखिलाए
मैं गुनगुनाऊँ
तो तू मेरे साथ में गाये
मैं रोऊँ तो तेरे हाथ
मेरे आंसू पोंछें
नींद में जब भी बोझल हों आँखें
सोने को तेरा कांधा मिल जाये
कभी जो चाहे तू छोड़ के जाना
उस से पहले मुझे मौत आ जाये
© मधु अरोरा
७/१०/१४
Sunday, May 11, 2014
Tuesday, October 1, 2013
यहीं हूँ मैं
तुझसे दूर जाकर भी
गई नहीं मैं कहीं
यहीं हूँ मैं
तेरे आस - पास
कभी बादलों में
कभी घटाओं में
कभी फिज़ांओं में
कभी हवाओं में
कभी गीत में
कभी संगीत में
कभी तेरी धडकनों में
कभी तेरी साँसों में
कभी दिन में
कभी रातों में
कभी सपनों में
कभी नींदों में
बस इतनी सी इल्तजा़ है
तू मुझे महसूस तो कर
© मधु अरोरा
१/१०/२०१३
Monday, August 5, 2013
Wednesday, July 3, 2013
एक कविता इंदोरियन के नाम
कल मैंने
आसमान की तरफ मुंह करके
ये कहा
ऐ खुदा तेरे रहते
तेरे बंदों को
पीने का पानी भी मयय्सर नहीं
और फिर
बादल इस तरह बरसे
कि सारा आसमान खाली हो गया
और सब घरों में
पानी भर गया
© मधु अरोरा
४/७/२०१३
Tuesday, July 2, 2013
अजनबी शहर, अजनबी लोग
ये कहाँ आ गए हम
एक अजनबी से शहर में
अन्जाना शहर
अन्जाने लोग
पहचाने से चेहरे
पर बेगाने लोग
हमदर्द बनकर
दिल दुखते लोग
दर्द देकर
मुस्कुराते लोग
रिश्तों में इतने फासले
फासलों के दरम्यान भी हैं द्रूरियां
सबके चेहरों पर हैं मुखोटे कई
रोज़ दिखते हैं रंग कई
जाने कैसे कैसे आजमाते लोग
हर पल में बदल जाते लोग
ये कहाँ आ गए हम
एक अजनबी से शहर मे….
© मधु अरोरा
३०/ ०७/ २०१३
Tuesday, June 18, 2013
क्या तुम मुझे….
अक्सर
कुछ टूटे फूटे से शब्द
जब भी मैंने
कहे तुमसे
वो बन गए अर्थपूर्ण
एक ग़ज़ल
थक के
बहुत टूट गयी हूँ मैं
चाहती हूँ
खुद को समर्पित
कर दूं तुमको
क्या तुम मुझे….
© मधु अरोरा
१७ / ६ / १३
Tuesday, March 26, 2013
होली मुबारक
मुझसे कोसों दूर तुम
मेरी हर सोच से अंजान
मेरे हर ख्याल में तुम
मै तुम्हारे ख्याल में
कहीं नहीं
फिर भी चाहता है दिल
तुमसे ये कहना
होली मुबारक हो जाना
26/3/2013
©मधु अरोरा
Tuesday, December 4, 2012
अपना अपना दर्द
कोई टूट कर चाहता है
कोई टूट कर बिखर जाता है
अपना अपना दर्द है
अपना अपना तरीका
कोई सिमट जाता है
कोई बिखर जाता है
© मधु अरोरा
2/12/12
Thursday, October 4, 2012
मुझे एहसास रहने दो...
न पोंछो आंसू मेरे
न मेरा दर्द बांटो तुम
मैं जिंदा हूँ अभी
मुझे एहसास रहने दो
आँखों में हलचल है
अभी कुछ अश्क बाकी हैं
सीने में धड़कन है
अभी कुछ साँस बाकी है
मुमकिन है तेरे दिल में
कोई अरमान बाकी हो
कोई खेल अधूरा हो
कोई हिसाब बाकी हो
कुछ काम बाकी हैं
कुछ फ़र्ज़ बाकी हैं
धरती का सीना है छोटा
कफ़न से बदन की दूरी बाकी है
जाने भी दो छोड़ो
अब ये बात रहने दो
मैं जिंदा हूँ अभी
मुझे एहसास रहने दो
© मधु अरोरा
३०/९/२०१२
Sunday, July 22, 2012
रोशन हों तेरी रातें.....
रोशन हों तेरी रातें
खुशियों का बसेरा हो
फिर चाहे जो भी
हाल मेरा हो
जलती रहे शमा
या दिल में अँधेरा हो
बंद हों जब आँखें
लबों पर नाम तेरा हो
बदन का कोई घाव
भरे या न भरे
लबों पर हो मुस्कान
सीने में दर्द गहरा हो
मुझे मिलें सारे रंज
तेरा मुस्कानों का सवेरा हो
तुझे हकीकत में वो मिले
जो सपने में तेरा हो
०१/०३/२००९
© मधु अरोरा
Thursday, July 19, 2012
अगर तुम मेरी ज़िन्दगी में न आये होते.....
अगर तुम मेरी ज़िन्दगी में न आये होते
तो मैंने भी इतने ख्वाब न सजाये होते
रह लेती मै भी ज़िन्दगी भर तन्हा
अगर तुम न यूँ मुस्कुराये होते
मेरी भी रातों में रोज़ चाँद चमकता
आँखें खोलते ही रोज़ जो तुम नज़र आये होते
यूँ तन्हा न होता ज़िन्दगी का सफ़र
इतने ठिकाने जो तुमने अपने न बनाये होते
१४/७/२०१२
मधु अरोरा
Tuesday, June 26, 2012
मै फिर अवतरित हो जाऊँगी
मै फिर अवतरित हो जाऊँगी
एक नया रंग
नया रूप
नया जीवन लिए
जितनी बार भी तुम
मुझे, अपने अहम् की
धूल में रोंदोगे
तोड़ोगे और मिटाओगे
बीज बनकर
उगूंगी धरा से
वृक्ष बन के
बढ़ऊँगी और लहराऊँगी
छाया दूँगी
फल दूँगी
कर दूँगी सब
तुम्हें समर्पण
तुम्हारे लिए थी
तुम्हारे लिए हूँ
तुम्हारे लिए रहूंगी
ये सच तुम जान जाओगे
२६/६/२०१२
मधु अरोरा
Friday, June 15, 2012
Saturday, June 2, 2012
Friday, May 25, 2012
Monday, May 21, 2012
Saturday, March 31, 2012
इक रोज़
गुजरते वक़्त के साथ मैं भी
इक रोज़ चली ही जाउंगी
सुनो, मेरे जाने के बाद
किसे दिखाओगे, वो तस्वीरें
जिन्हें संभाले रखे हो
अक्सर महरूम हूँ
मैं जिस आवाज़ से
किसे सुनाओगे , वो आवाज़
जिसे चुप करवाते हो
अपनी ख़ामोशी से
रात भर जागती हैं
जो दो आँखें
तुम्हारे इंतज़ार में
बंद हो जाएँगी, वो कभी
फिर किसे इंतज़ार करवाओगे
२४/२/२०१२
मधु अरोरा
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इक रोज़,
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वक़्त
Friday, March 16, 2012
ख्वाबों की चादर
तुम्हारे ख्यालों के
सतरंगी धागों से
ख्वाबों की चादर
बुनती हूँ
और फिर
उसी चादर को ओढ़ के
सो जाती हूँ
तुम्हारे ही खवाबों में
खो जाती हूँ
सुबह होते ही
सब खवाब
छू हो जाते हैं
मेरे ख्वाबों की चादर
फिर तार - तार हो जाती है
और फिर दिन भर
मैं उन्हें फिर से
बटोरती हूँ
और रात में जब
सब सो जाते हैं
मैं फिर से बुनने लगती हूँ
और फिर से ख्वाब सजाती हूँ
कुछ मेरे लिए
कुछ तुम्हारे लिए
१५/०३/२०१२
मधु अरोरा
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